प्यारा बेटा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रचना शर्मा1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
तू मुझे बहुत ही प्यारा लगता है
जब तू छोटा था सारा दिन शरारत करता था,
दिन में सो जाता और रात को मस्ती करता था,
छोटी-छोटी बातों पर ज़ोर का हल्ला करता था,
तेरी मस्ती की शिकायत सारा महल्ला करता था’
तू मेरा नन्हा सूरज है, घर तुझसे उजियारा लगता है,
तू मुझे बहुत ही प्यारा लगता है . . .
तू जब-जब भी बीमार हुआ डॉक्टर बन तुझे सँभाला है,
तुझे कभी कोई तकलीफ़ ना हो, तेरे दर्द को अपना माना है,
मैं भी भूखों मरती हूँ, गर तू भरपेट नहीं खा पाता है,
मैं भी रातों को जगती हूँ जब तू नींद नहीं ले पाता है,
मेरे हर पहर का पहिया तेरे इर्द गिर्द ही चलता है,
तू मुझे बहुत ही प्यारा लगता है . . .
कितनी रातें जागकर काटी, बस तुझे पढ़ाने की ख़ातिर,
तेरे हर कहने को सुनती रही, ना दिन देखा ना तारीख़,
परेशानियों को समझा एक सच्चे दोस्त की तरह,
तो मेरी हर ख़ुशी का तुझको बना दिया इकलौता वारिस,
फिर भी तुझको मेरी चाहत, मेरा प्यार क्यूँ इतना खलता है,
तू मुझे बहुत ही प्यारा लगता है . . .
आज तू इतना बड़ा हो गया, मेरी हर बात अनसुनी करता है,
हर एक बात पर चिढ़ता है, हर बार तू ग़ुस्सा करता है,
आज मैं तुझसे पूछती हूँ, क्या मैं भी तुझको प्यारी लगती हूँ?
जितना तू मुझको प्यारा लगता है।
तू मुझे बहुत ही प्यारा लगता है . . .
अब एहसास होता है कि तू छोटा ही अच्छा था,
अपनी इस प्यारी सी माँ का, तू नटखट सा चंदा था,
मैं तुझको प्यारी लगूँ या ना लगूँ,
पर तुम मेरा इकलौता प्यारा बच्चा था।
आज तू बड़ा हो गया लेकिन,
एक दिन तू भी बचपन में जाना चाहेगा,
पर जा नहीं पाएगा,
अपनी इस माँ की ममता को वापस नहीं ला पाएगा,
मैं फिर भी ताउम्र दूर रहकर भी तुम्हारी फ़िक्र करती रहूँगी,
क्यूँकि दिल तुझे पुकारा करता है,
तु मुझे बहुत ही प्यारा लगता है . . .
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