बँटवारा
काव्य साहित्य | कविता साक्षी शर्मा 'पंचशीला'1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
सुना है कि घर का बँटवारा करने आए हो,
अच्छा तो अपनो छुटकारा करने आए हो,
ठीक है, चलो बाँटो, अम्मा का प्यार, बाबूजी की मेहनत,
वो बचपन की बातें, सुहानी वो यादें,
वो खेल, वो खिलौना, वो थक कर के आने पर चैन से सोना,
वो मैया की थपकी, वो मीठी सी लोरी,
वो आँगन में जो तुमने खेली थी होरी,
वो चीज़ें जो बाबूजी बाज़ार से लाए थे,
हाँ वही जो तुम सब ने बाँट के खाए थे,
वो खटिया जो टूटी थी उद्दंडता में,
वो साड़ी जो ओढ़ी थी व्यंग्यता में,
वो नींदें, वो रातें, वो सपनों की, सपनों की, अपनों की बातें,
ये सब बाँटना तुम, ना कुछ छाँटना तुम,
सब अच्छे से करना जो गवारा करने आए हो,
सुना है की घर का बँटवारा करने आए हो,
अच्छा तो अपनो छुटकारा करने आए हो।
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