बस स्नेह मेरा स्वीकार करो
काव्य साहित्य | कविता साक्षी शर्मा 'पंचशीला'1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
ये इश्क़ मोहब्बत वाली दुनिया
मुझे रास नहीं आती है,
तुम अँधेरे के दीपक बन
बस स्नेह मेरा स्वीकार करो,
अरे लैला मजनूँ, रोमियो जूलिएट,
ख़ूब देख लिए अब हैं मैंने,
जो राधा-कृष्ण सा कर सको
तब ही प्रेम का भार धरो,
मैं फुलवारी पर मरने वाली
साधारण सी लड़की हूँ,
ये पार्क में होने वाली बातें
मुझे रास नहीं आती हैं,
अरे झूठे मान दिखाने वाले
ख़ूब देख लिए अब मैंने,
जो सती-शिव सा मान सको
तब ही मेरे साथ चलो,
मैं तो गजरे पर मरने वाली
साधारण सी लड़की हूँ,
ये चंदा-तारों वाली बातें
मुझे रास नहीं आती हैं,
ये झूठे दुख-सुख के साथी
ख़ूब देख लिए अब मैंने,
जो सिया-राम सा साथ रहो
तभी मेरा हाथ धरो,
अन्यथा,
ये इश्क़ मोहब्बत वाली दुनिया
मुझे रास नहीं आती है,
तुम अँधेरे का दीपक बन
बस स्नेह मेरा स्वीकार करो,
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