बेदर्दी इन्सान
काव्य साहित्य | कविता संजय वर्मा 'दृष्टि’1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मोहल्ले में रात को भौंकती कुतिया
सतर्क कर देती
कोई आ रहा है?
सभी धर्म के लोग उसे रोटी डालते
वो खा लेती
दुम आभार स्वरूप हिलाती।
कुतिया के पिल्लों को
चोरी से कुछ लोग उठा ले गये
माँ का स्नेह-दुलार क्या होता है
उन्हें इससे क्या वास्ता?
रोती-कराहती कुतिया
ढूँढ़ रही अपने बच्चों को
वो अब दी जाने वाली रोटी भी
नहीं खा रही।
खाए भी तो कैसे
बच्चों के माँ से अलग होने का दर्द
एक माँ ही समझ सकती है
जैसे भ्रूण-हत्या होने पर
इंसानों में माँ को होता है
दर्द।
कुतिया सोच रही है
यदि में इन्सान होती तो बताती
इंसानों को अपनी वेदना
कौन सुने-समझे उसकी वेदना
वो समझ रही है
कैसे-कैसे दुनिया में हैं
बेदर्दी इन्सान जो करते हैं भ्रूण हत्या
और कुछ लोग चुराकर दूर करते हैं
हमसे हमारे पिल्ले।
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