बुद्धि और भावनाओं का संघर्ष
काव्य साहित्य | कविता प्रतीक झा ‘ओप्पी’15 May 2025 (अंक: 277, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बुद्धि थक गई
तो छुप गई एक घर में—आराम करने के लिए
वहाँ उसे पता चला
यह घर तो भावनाओं का है।
सजग हो गई वह
ध्यान से सुनने लगी—भावनाओं की बातें
भावनाएँ आपस में कह रही थीं—
अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु
हमें करना होगा बुद्धि के सम्मुख
प्रेम, मित्रता और सम्मान का दिखावा।
और यदि फिर भी बात न बनी
तो करना होगा आक्रमण—
ताकि हमारा ही साम्राज्य फैले चारों ओर।
यह सब सुनकर
बुद्धि आश्चर्यचकित रह गई।
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