मैं पास बैठना चाहता हूँ
काव्य साहित्य | कविता प्रतीक झा ‘ओप्पी’15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मैं
नहीं बैठना चाहता
गाँधी, अम्बेडकर या भगत सिंह के पास
न ही सुन्दर नारियों के बीच।
मैं
बैठना चाहता हूँ केवल
उस कमरे में
जहाँ
चारों ओर
बिखरी पड़ी हों
सिगरेट की अधजली टुकड़ियाँ
और सामने बैठा हो
मानव इतिहास का
सबसे प्रमुख
सबसे जटिल
और सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति—
ओपेनहाइमर।
वही ओपेनहाइमर
जिसके आगे
संसार की महानतम प्रतिभाएँ भी
मस्तक झुका देती हैं।
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