चली चंचला
काव्य साहित्य | कविता रुचि श्रीवास्तव15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
तरुणी तनुजा ताल के तट पर खड़ी तरुवर की छाँव में,
विकल विह्वल विचलित होती जाती वृक्ष की साँझ में,
अपने मन मंदिर में मनभावन प्रिय की मूर्ति रखके,
चली चंचला चपल चपल प्रियवर की बाँह में॥
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