डर लगता है
काव्य साहित्य | कविता स्नेहा15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मैं बहुत शांत रहती हूँ;
लेकिन उसके शांत रहने से मुझे डर लगता है!
मैं बहुत कम बोलती हूँ;
लेकिन उसके कम बोलने से मुझे डर लगता है!
मैं बात-बात पर नाराज़ हो जाती हूँ;
लेकिन उसके नाराज़ होने से मुझे डर लगता है!
हाँ! शायद वो मेरे सबसे ख़ास है,
इसलिए मुझे उनके खोने का डर लगता है . . .!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं