दर्द देगी यहाँ साफ़गोई सदा
शायरी | नज़्म दिलबाग विर्क15 Mar 2015
दर्द देगी यहाँ साफ़गोई सदा
सीख लो बात को तुम घुमाना ज़रा।
तुम ग़लत मानते, बात ये और है
जो लगा ठीक मुझको वही तो कहा।
है वहीं, ढूँढना आदमी में उसे
आदमी से जुदा कब हुआ है ख़ुदा।
चाहिए उम्र इसको, न आसान ये
एक दिन में नहीं पनपता फ़लसफ़ा।
ख़ूबसूरत बनेगा इसी से जहां
'विर्क' फैले मुहब्बत करो ये दुआ।
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