एक ख़रीदो, एक मुफ़्त
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. कौशल श्रीवास्तव15 Nov 2019
(मेरी किताब ‘कविता सागर’ – २०१७ से उद्धृत)
सुबह के अख़बार में देखा एक आकर्षक विज्ञापन
लिखा था “एक ख़रीदो, एक मुफ़्त”
नीचे मुद्रित था चर्चित फ़ैन्सी स्टोर का नाम
मैंने बना लिया आज शौपिंग का प्रोग्राम।
कमीज़ों के दाम पहले ही कम थे
ऊपर से दूसरी मुफ़्त थी
मैंने जल्दी से एक जोड़ा झपट लिया
यद्यपि रंग मेरी उम्र के लिए चमकीला था
किन्तु स्टॉक ख़त्म होने का डर था।
कुछ क़दम आगे बढ़ते ही देखा
कलात्मक सिल्क की टाई का रंगीन गुच्छा
जिसके इर्द-गिर्द था नौजवानों का जत्था
मुझे हैरान देखकर सेल्स गर्ल ने बढ़ा दिया
दो टाईयों का एक पुलिन्दा
सोचा इनकार कर दूँ, लेकिन हिम्मत हार गया।
थोड़ी ही दूर पर दिख गयीं
आकर्षक कोट-पैन्ट की सुसज्जित क़तारें
मुझे लालच हुआ, साथ में हिचकिचाहट भी,
तभी कहीं से आवाज़ आयी “आज दिल सुनो की”
मैंने मन ही मन कहा ‘एवमस्तु’
और चल पड़ा कोट-पैन्ट आज़माने।
मेरी स्वीकृति की प्रत्याशा में
हसीन युवती ने एक बड़ा पैकेट थमा दिया
“नीला और क्रीम रंग आपके ऊपर खिलेगाl”
महँगा सोचकर मैंने क़ीमत पूछ ली
तो उसने मुस्कुराते हुए कहा
“आपके जैसे भद्र पुरुष क़ीमत नहीं पूछते
और मेरी पसन्द को इनकार भी नहीं करतेl”
मुझे बोलना पड़ा “धन्यवाद”
और मैं चल पड़ा बाहर की ओर।
जब तक मैं सीढ़ियों पर क़दम रखता
तेज़ी से पीछा करते हुए एक युवक ने कहा
“महाशय, आपके कोट-पैन्ट ब्रान्डेड हैं
उन्हें ब्रान्डेड जूतों का साथ चाहिए।”
बगल के एक विनम्र ग्राहक ने अनुमोदन किया
फिर मेरे पास कोई विकल्प नहीं था,
‘शायद आज का दिन अमंगल है’ सोचते हुए
मैं भाग चला भुगतान डेस्क की ओर।
ख़रीदी वस्तुओं की रसीद देखकर
मैं अचानक माथा दर्द से परेशान हो उठा,
तुरन्त एक सहायक ने कोल्ड ड्रिंक दिया
और सहारा देकर मुझे कुर्सी पर बिठाया,
शीघ्र ही मुझे स्वस्थ देखकर उसने धीरे से कहा
“भूरे रंग का जूता मुलायम चमड़े से बना है
इसे सिर मालिश करने में इस्तेमाल करें
जब दर्द अधिक तक़लीफ़ दे।”
जब तक मैं इस कथन का अर्थ समझता
वह ग्राहकों की भीड़ में खो गया,
परन्तु छः महीनों बाद भी
स्वप्न में वह रसीद यदाकदा दिख जाती है
और हलके सिर दर्द से नींद ख़त्म हो जाती है,
मुझे आश्चर्य होता है
‘वह व्यक्ति कितना अनुभवी था!’
एक वर्ष बाद मैंने पुनः देखा वही विज्ञापन
अचानक बढ़ गयी दिल की धड़कन,
कैसे करें ‘जाएँ या नहीं’ का निर्धारण
यह था भावना और बुद्धि के बीच द्वंद्व का समीकरण।
तभी मैंने पढ़ा एक अर्थशास्त्री का विवरण :
“खुले-हाथ शौपिंग करें –
यह है सकल घरेलू उत्पाद के विकास का साधन,
आर्थिक प्रगति का सामयिक चिन्तन
और आपकी देशभक्ति का गोपनीय मूल्यांकन।”
तुरन्त कान में गूँज उठे चार्वाक दर्शन के कुछ शब्द :
“यावत् जीवेत सुखम जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतम पीवेत”
मैं हो गया सचेत, यह था बाज़ार जाने का संकेत
मेरे पैर स्वतः चल पड़े परिवार के समेत।
यही है इक्कीसवीं शताब्दी की जीवन शैली
गूँजती रहेगी चार्वाक की आकर्षक वाणी
और होती रहेगी हमारी जेब ख़ाली!
(संकेत : चार्वाक दर्शन करीब ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उभरा जिसका दृढ़ विश्वास उपभोक्तावाद में था; भगवान् या आत्मा या धर्म में नहीं।)
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