राष्ट्रपिता से संवाद
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कौशल श्रीवास्तव15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
(महात्मा गाँधी के जन्म-दिवस पर एक भावपूर्ण उद्गार)
हे राष्ट्रपिता, हे महापुरुष, हे सत्य अहिंसा के प्रतीक
हे शान्ति दूत, हे दीनबन्धु, हे जनमानस के नायक
हे भारत के वरद पुत्र, हे आज़ादी के संरक्षक!
आज तुम्हें मैं करूँ प्रणाम, स्वीकार करो पुष्पों का अर्पण
करता हूँ तेरे जन्मदिवस पर अन्तर्मन से अभिनन्दन।
आज तेरी तस्वीर के आगे प्रश्न अनेकों उठते हैं
शायद तुम संवाद सुनोगे, इसीलिए कुछ कहता हूँ
स्वर्गलोक कहाँ है स्थित – जान नहीं मैं पाया हूँ
विस्मित होकर बच्चों जैसा, इधर-उधर पूछता हूँ।
किन्तु इस युग के विज्ञान-जनित संसाधन से
संवाद गूँजता है मानव का, अनन्त विशाल गगन में
तारामंडल के समूह में देवलोक भी स्थित होगा
आशा है तुम सुन पाओगे, उत्तर की अभिलाषा में।
क्षमाप्रार्थी हूँ पहले ही – शायद कोई भूल करूँ
मेरा ज्ञान भी सीमित है, कैसे मैं इनकार करूँ।
वर्तमान के दर्पण में तेरे आदर्श हो गए धुँधले
गाँधी के अनुगामी हो गए युक्तिहीन निठ्ठले,
गौण हो गई उनकी वाणी प्रजातन्त्र के मेले में
गाँधी शब्द बिकाऊ हो गया, गद्दी की छीना-झपटी में।
कफ़न बन गई तेरी धोती, लाठी मारपीट का डंडा
बुद्धि के अन्धों ने पहना तेरा चर्चित चश्मा,
नीलाम हो गई तेरी चप्पल राजनीति के गलियारे में
‘चुनाव चिन्ह’ के योग्य बन गई नेताओं की नज़रों में।
खादी बन गई महँगी वस्तु, चरखा हुआ ग़ुलाम
जाति धर्म के चक्कर में फैल गया सामाजिक संग्राम,
सत्य अहिंसा घायल है, दवा नहीं उपलब्ध
शान्तिदूत कहलाने वाला देश हुआ निस्तब्ध।
कुर्सी-पूजा नया धर्म है, नैतिकता का ह्रास
आरक्षण का सिक्का चमका, मेधा का उपहास
जनता के शासन में भी जनता ही शोषित है
जनतन्त्र का ज़हर आज भूखी जनता ही पीती है।
प्रश्न छुपे हैं इस चर्चा में, कितना करूँ बखान
स्वयं समझकर उत्तर दे दो, हे ज्ञानी विद्वान!
ये प्रश्न तुम्हें झुँझलाएँगे, शायद उत्तर नहीं मिल पाएँगे
यह युग परिवर्तन की वेला है, हमलोग ही उत्तर खोजेंगे
भारतवंशी फैल चुके हैं विश्व-रूपी प्रांगण में
आदर्श तेरा स्थापित होगा, दुनिया के कोने-कोने में!!
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