वेबिनार की आरती
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. कौशल श्रीवास्तव15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
कोरोना के विषम काल में मिलन हुआ अपवाद
लॉकडाउन की काली छाया लोगों पर हुई सवार
‘क्वारंटीन’ हुए निवास में, जीवन लगता बेकार
जीवन-मृत्यु के बीच पड़ा, कोरोना की मार।
कामकाज सब बंद हुए, ध्वस्त हुआ व्यापार
गूगल, ज़ूम, की चाँदी हो गई, कम्प्यूटर का जयकार
सेमिनारों की क़ब्र खुदी, वेबिनारों का उद्भव
कोरोना की कृपा हुई, मुफ़्त मिला यह वैभव।
सजधज कर बैठे कविवर, विडियो पर दिखते यंगर
महिलाओं की बात अनोखी, लगती श्याम सलोनी
विश्वमंच पर आयोजन, ख़र्च नहीं एक फूटी कौड़ी
चंद दिनों के अन्दर मिल गई पूरब पश्चिम में ख्याति।
मुफ़्त मिलन, बातें लम्बी, चेहरों पर मुस्कान
‘कट पेस्ट’ से कविता लिखकर हो गए नए विद्वान
मित्र मंडली की महफ़िल में सब लेते हैं संज्ञान
वाह-वाह की गूँज हुई, सफल हुआ अभियान।
आशु कवि का तगमा लेकर फूले नहीं समाए
वेबिनारों के संचालन का भार स्वतः उठाए
विज्ञापन करते बार-बार तस्वीरों के साथ
खोज-खोज कर श्रोता लाते, अद्भुत है उत्साह।
वेबिनारों का संचालन, बना एक व्यापार
साहित्य जगत में फैल गया प्रतियोगी व्यवहार
कौन करे कितना आयोजन, एक नया पैग़ाम
सस्ती ख्याति पाने का समकालिक आयाम।
ह्वाट्स एप्प (WhatsApp) की महिमा न्यारी
वैश्विक ग्रुप बनाकर उसने कर दी इच्छा पूरी
मिनट मिनट आते संवाद, कविता और कहानी
‘धन्यवाद’ और ‘इमोजी’ की गिनती भी है लम्बी।
‘सेव’ करूँ या ‘डिलीट’ करूँ? यह प्रश्न बड़ा है भारी
अब थोड़ा विश्राम करूँ, दुविधा है कष्टकारी
‘ह्वाट्स एप्प’ की संगति, “वेबिनार“ की आरती
कहें इसे हम प्रगति या परिवर्तन की संस्कृति!!
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