प्रायश्चित की वेला
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कौशल श्रीवास्तव2 May 2018
निर्भया, उन्नाव, कठुआ नाम है कुत्सित कर्मों का
दुनिया झेले यह दंश विषैला सामाजिक परिवर्तन का,
भस्म हो गयीं बालाएँ बलात्कार की अग्नि से
दुष्टों ने अपनी प्यास बुझायी दैहिक रक्त प्रवाहों से,
भारत भूमि की आँखें भीगीं, शाप-ग्रस्त इस पीड़ा से
निर्मल काया दूषित हो गयी, बलात्कार के छींटों से।
अबला, नारी, मासूम बच्ची, शिकार बनी शैतानों का
देह के भूखे घड़ियालों ने भूख बुझायी निर्मम होकर,
आज हुआ पुरुषत्व पराजित, रक्षक भक्षक बनकर
शर्मिन्दा है सभ्य समाज, ऐसे कलंक का टीका लेकर
जनतन्त्र का तगमा भारी, पर न्याय नहीं उपलब्ध
वर्षों तक न्यायालय का चक्कर, जीवन हुआ अभिशप्त"
कुछ नाम यहाँ सांकेतिक हैं, परदे के पीछे हैं अनेक
सबका कैसे नाम लिखूँ - शब्द हमारे सीमित हैं,
हर रोज़ सुनायी देती है एक नई चीत्कार
नेतागण के झगड़े में बलात्कार बना चुनावी हथियार
नैतिकता का ह्रास हुआ, भोग-विलास का है साम्राज्य
सरकारी तंत्र गुमराह हुआ, क़ानून नहीं पर्याप्त}
महिला शक्ति का चर्चित नारा सर्वत्र सुनायी देता है,
क्या दीन-दुःखी अबला शामिल है? पता नहीं चलता है
नारी नारी में विभेद, एक बड़ा उपहास
कैसे रुकेगा बलात्कार? यह है एक दुष्कर संग्राम
प्रायश्चित और शुद्धिकरण – गाँधी का पैगाम
यही आज का मूलमंत्र है, लेना है इसका संज्ञान।
भारतवंशी होकर भी हम अन्तर्मन से लज्जित हैं
व्यथा रूह की कैसे बाँटें - सात समुंदर दूरी है,
न्याय नीति के द्वारा ही सामाजिक सद्भाव बढ़ेंगे
दूर देश में भारत का सम्मान सुरक्षित रखेंगे।
(संकेत : निर्भया (२०१२), उन्नाव (२०१७-१८), कठुआ (२०१८) नामक क्रूर बलात्कार अति चर्चित है।)
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