एक थी उम्मीद
काव्य साहित्य | कविता सरिता अंजनी सरस15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
बहुत दिनों बाद
खूँटी पर टँगी उम्मीद को उतारा
धोया, पोंछा,
फिर निचोड़ कर टाँग दी
किसी खूँटी पर . . .!
और
दरख़्तों के बीच
अक्षत की तरह फैली धूप को
बटोरते हुए,
एक पेशानी शाम की
सिलवटों के बाद . . .!
पहुँची टँगी हुई उम्मीद को लेने
मगर देखती हूँ,
वो उम्मीद
किसी और के कंधे पर टँगी थी . . .!!
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