गुरुदेव आपसे सीखा मैंने . . .
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
गुरुदेव आपसे सीखा मैंने,
ऐसे आगे बढ़ते जाना है।
दीन दुखी और निर्बल काया,
सबको गले लगाना है।
नहीं सताना निर्धन काया,
जिससे समाज की हानि हो।
नहीं जाना तुम उस रस्ते पर,
जहाँ विष बेल की बानी हो।
मधुर बोलना छाप छोड़ना,
हँस कर कष्ट सह जाना है।
गुरुदेव . . .
बड़े बुज़ुर्गों और ग़रीबों,
इनका सदा सम्मान करो।
पढ़ो-लिखो, मेहनत करके,
विश्व में देश का नाम करो।
बनकर सुभाष वीर शिवजी,
भारत भाल की ढाल बनो।
समाज बीच में मानवता का,
सत्य, अहिंसा का संचार करो।
मिलती मंज़िल उसी नेक को जो,
गुरु चरणों में जाता है।
गुरुदेव . . .
ये झूठ मोह की दुनिया त्यागो,
माँ-बाप का तुम सम्मान करो।
काम समय पर अपना करना,
चुग़लख़ोर से दूर रहो।
रहो किताबों बीच सदा तुम,
ये भंडार ज्ञान का देती हैं।
मोबाइल गेम और शरारतें,
ये कष्ट बड़ा पहुँचाती हैं।
ब्रह्मा, विष्णु छाया शंकर की,
शिष्य गुरु में पाता है।
गुरुदेव . . .
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