रबड़ी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी1 May 2019
भूखा अंकित मचल गया,
उसने काटी गबड़ी।
बोला मम्मी खाना दे दो,
भूख लगी है तगड़ी।
मम्मी बोलीं पेड़ कट गये,
नहीं बची है लकड़ी।
आ-जा रखकर गैस बना दूँ,
तेरे ख़ातिर रबड़ी॥
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टिप्पणियाँ
उमेश चन्द्र सिरसवारी 2019/05/01 04:22 AM
Bahut Bahut Dhanyabad sir..
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सकुन्तला गुणतिलक 2024/09/06 06:34 PM
बहुत अच्छी कविताएँ हैं। जैसे आज के समाज का दर्पण है।