पाठकों को अलग अनुभूति देती पुस्तक ‘पहियों पर पैर’
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी1 Nov 2025 (अंक: 287, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: पहियों पर पैर (यात्रा-वृत्तांत)
लेखक: प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप‘
प्रकाशक: साहित्यभूमि, नई दिल्ली
संस्करण: प्रथम (2024)
पृष्ठ: 143
मूल्य: ₹595
यात्रा-वृत्तांत हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। यात्रा-वृत्तांत में लेखक की यात्रा-स्थल का यथार्थवादी वर्णन होता है। यात्रा-वृत्तांत किसी यात्रा के अनुभवों का वह लिखित दस्तावेज़ होता है, जिसमें यात्रा के दौरान देखे गए दृश्यों, अनुभूत किये गए अनुभवों और महसूस की गई भावनाओं को शब्दों में पिरोकर लेखक चित्रित करता है। यह एक व्यक्ति की, उसकी यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन होता है, जो पाठकों को उस स्थान और यात्रा के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
‘पहियों पर पैर’ दिल्ली विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय, श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के हिंदी विभाग में आचार्य प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ का नव प्रकाशित यात्रा-वृत्तांत है। पाठकों को पुस्तक का शीर्षक ‘पहियों पर पैर’ चौंकाता है। लेखक ख़ुद इस बात को स्वीकार करते हुए बताता है, “वास्तव में कई बार मुझे ऐसा लगता है कि मेरे पैरों में चक्र है या मेरे पैर पहियों पर लगे हैं, जिसके कारण समय-समय पर पर्यटन के उद्देश्य से यात्राएँ करने का सौभाग्य मिलता रहा है।”
यह सच है कि कुछ लोग सरकारी कामकाज के चलते यात्राएँ करते हैं, तो कुछ लोग प्रकृति, समाज और देश के साथ-साथ संसार से तादात्म्य स्थापित करने, उन्हें जानने-समझने, उनके माध्यम से अपनी सर्जनात्मकता को विकसित करने, जीवन की भाग-दौड़ से थोड़ा अलग हटकर आनंद लेने के उद्देश्य से यात्रा करते हैं। प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ की यह यात्राएँ इसी कड़ी का एक हिस्सा हैं।
लेखक प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने अपने जीवन की यात्रा में देश और विदेश की कई यात्राएँ की हैं, जिनमें विदेशों में थाईलैंड, मॉरीशस के साथ-साथ भारत के शहरों, राज्यों-खजुराहो, सिक्किम, अंडमान-निकोबार, शिलांग, हैदराबाद आदि की भी यात्राएँ की हैं। यह यात्राएँ कई दृष्टियों से ख़ास हैं। इनमें केवल यात्रा का यथार्थ चित्रण ही नहीं है, बल्कि उस स्थान के समाज, साहित्य, संस्कृति तथा सांस्कृतिक विरासत का भी सुंदर चित्रण हुआ है।
यदि हम थाईलैंड की बात करें, तो यह देश भारत का सांस्कृतिक साथी तो है ही, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक भागीदारी भी निभाता रहा है। थाईलैंड के विद्यार्थी भारत में रहकर बड़े मनोयोग से हिंदी सीख रहे हैं। भारत-थाईलैंड के रिश्तों पर तब और मुहर लग जाती है, जब लेखक ख़ुद लिखता है, “भारतवंशियों ने अपने ख़ून-पसीने और त्याग-बलिदान से इन देशों को विकास के पथ पर अग्रसर किया और उन्हीं के प्रयासों से ये देश आज विकसित होने की ओर निरंतर बढ़ रहे हैं।”
थाईलैंड में भारतीय व्यंजन आसानी से मिल जाएँगे और आप भारतीय व्यंजन का स्वाद ले सकते हैं। सड़क किनारे दाल मखनी, लच्छा पराँठा, आलू गोभी की सब्ज़ी, डोसा आदि खा सकते हैं। यहाँ लोग थाई भाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा और हिंदी का भी प्रयोग करते हैं। हिंदी फ़िल्में यहाँ काफ़ी लोकप्रिय हैं। आप लोगों को हिंदी गाने गुनगुनाते देख सकते हैं।
लेखक की एक यात्रा खजुराहो की है, जो भारत की कला, साहित्य, संस्कृति, इतिहास और धर्म विषयक चिंतन को समझने का अद्वितीय माध्यम है। खजुराहो जाकर आप देखेंगे कि वहाँ दूर-दूर तक शान्ति है; वहाँ का प्राकृतिक वातावरण आपको साफ़-सुथरा मिलेगा। भीड़-भाड़ से दूर, प्रदूषण और दौड़-भाग से दूर यह रमणीय स्थल पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ आपको विभिन्न मंदिरों में भारतीय स्थापत्य और कला के अद्भुत नमूने देखने को मिलेंगे। लेखक ने खजुराहो का बहुत ही मनोहारी वर्णन अपने इस यात्रा-वृत्तांत में किया है।
पर्यटन हर व्यक्ति को प्रेरित करता है। घूमने से व्यक्ति का चित्त कुछ नया करने के लिए प्रेरित होता है। इसीलिए तो हिंदी के बड़े साहित्यकारों ने यात्राएँ कीं, जिनमें राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय, मोहन राकेश और रामवृक्ष बेनीपुरी के नाम उल्लेखनीय हैं।
लेखक की अगली यात्रा भारत के सिक्किम राज्य की है। सिक्किम भारत का स्वच्छ सौंदर्य का एक प्रतीक राज्य है। यहाँ न तो अधिक गर्मी होती है, न अधिक सर्दी। यहाँ का मौसम मनभावन रहता है। हवा के साथ-साथ लहराते, झूमते-नाचते बादल सबको आकर्षित करते हैं। अक्सर लोग जब घूमने जाते हैं, तो अपने साथ ले जाये गए सामान में से निकले कचरे को रास्ते में डाल देते हैं। यहाँ की एक ख़ासियत है, यदि आप रास्ते में कहीं कचरा डालेंगे तो जुर्माना भरना पड़ेगा। यहाँ स्वच्छता का बहुत ध्यान रखा जाता है।
यहाँ के ग्रंथागारों में लेप्चा, संस्कृत, तिब्बती भाषा की दुर्लभ पांडुलिपियाँ तथा प्राचीन मूर्तियाँ, सिक्के, चित्र आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ के लोगों के परिधान पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मंदिरों की झाँकियाँ लोगों का मन मोह लेती हैं। हिममंडित पर्वत शृंखला मन को भाने वाली हैं। लेखक वर्णन करते हुए लिखते हैं, “हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएँ, विविधतापूर्ण वृक्षों-वनस्पतियों से भरे सघन वन, झर-झर झरते झरने, पवित्र गुफाएँ, औषधीय तप्त कुंड, नदियाँ तथा झीलें सिक्किम को सैलानियों का स्वर्ग बना देती हैं। यहाँ पक्षी निहारन, पर्वतारोहण, ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग, रॉक क्लाइंबिंग आदि का आनंद लिया जा सकता है।” यहाँ के उत्पाद भी विशिष्ट हैं। सिक्किम का सौंदर्य व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को स्फूर्ति देता है।
लेखक की अगली यात्रा मॉरीशस की है। मॉरीशस का नाम ज़ेहन में आते ही सबसे पहले ज़ुबान पर मॉरीशस के कथा सम्राट, “मॉरीशस के प्रेमचंद’ के नाम से मशहूर, अभिमन्यु अनत का नाम उभरकर आता है। उन्होंने अपने लेखन में गिरमिटिया मज़दूरों की वेदना का जीवंत वर्णन किया है। ‘लाल पसीना’ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। लेखक ने भी अपनी इस यात्रा में उनका ज़िक्र किया है।
लेखक ने भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप, शिलांग तथा हैदराबाद की अपनी रोमांचक यात्राओं का भी इस पुस्तक में वर्णन किया है। ये यात्राएँ जीवन में कुछ कर गुज़रने के सूत्र छोड़ती हैं। ये यात्राएँ उत्साह, कौतूहल तो बढ़ाती ही हैं, मनोरंजन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। मेरी राय में यह पुस्तक पाठकों को अवश्य ही पसंद आएगी।
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