चिंटी चिंटू गए बाज़ार . . .
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारी15 Sep 2024 (अंक: 261, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
घूमने और मस्ती करने,
चिंटी चिंटू गए बाज़ार।
भूख लगी बड़े ज़ोर की,
उन्होंने लिए समोसे चार।
फिर भी भूख नहीं बुझी,
रुपए बचे नहीं थे पास।
चिंटू को तरकीब इक आई,
उसकी मौसी थी हलवाई।
चल दिए दुकान मौसी की,
बड़े बाज़ार में लगती थी।
जलेबी और गर्म पकौड़े,
दुकान सजाकर रखती थी।
आते देख चिंटू चिंटी को,
मौसी ने बड़े लाड़ लड़ाए।
गर्म-गर्म दौनों में रखकर,
रसगुल्ले आठ खिलाए।
पेट भरा चिंटी चिंटू का,
दोनों मंद-मंद मुस्काए।
घूम शहर की सारी गलियाँ,
शाम को वापस घर को आए।
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