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जय हो कोरोना मैया . . .

 

पुनिया चाची अब सुबह से ही उठ कर पूरे उत्साह से घर के अगल–बगल उगाई साग–सब्ज़ी की देखभाल में जुट जाती हैं, जोकि आस–पास वालों के लिए आश्चर्य का विषय था। भरे-पूरे गाँव में पुनिया चाची का घर हमेशा उदास ही रहता। घर के आस–पास भी उदासी की ही लहर छाई रहती। 

सालों पहले पुनिया चाची के पति नत्थू चाचा की मौत के बाद पुनिया चाची ने गुज़र-बसर की ख़ातिर अपने इकलौते बेटे राम को गाँव के अन्य पुरुषों के साथ बड़े शहर मुंबई भेज दिया था। राम मुंबई की चकाचौंध से प्रभावित होकर वहीं का होकर रह गया। चाची के गुज़र–बसर के लिए पैसे ज़रूर भेज दिया करता था। बात यहीं तक होती तो ठीक था लेकिन जब राम ने मुंबई में ही अपनी शादी भी कर ली तब पुनिया चाची पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। देखते देखते काफ़ी समय बीत गया पर राम ने गाँव लौटने का नाम तक नहीं लिया। अधेड़ उम्र में ही पुनिया चाची मानो एकदम बूढ़ी हो चली। उनकी ज़िन्दगी एकदम नीरस हो गई थी। 

अचानक समय बदला। सारे विश्व पर कोरोना का प्रकोप फैल गया। ज़िन्दगी मानो थम-सी गई। लोगों का काम धंधा भी बंद हो गया। दुनिया मानो थम-सी गई, परन्तु पुनिया चाची को मानो नया जीवन मिल गया। उसका बेटा आख़िर गाँव जो लौट आया था। वो भी बहू को लेकर, साथ ही अब कभी शहर न लौटने का फ़ैसला कर। शहर में राम का काम-धंधा बंद हो गया। अपने भी पराए से हो गए। ससुराल वाले किसी मदद के लिए सामने न आए, तो उसे अपने गाँव की याद आई। 

राम के घर लौटने से मानो पुनिया चाची के घर में रौनक़ आ गई थी। उसके घर के बाहर गौ माता का राज हो गया। पुनिया चाची अब पहले से ज़्यादा ख़ुश रहती और दिल ही दिल में कोरोना को याद करती ‘जय हो कोरोना मैया ’!

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