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नया सवेरा

 

सुबह घर के आगे सूर्योदय को निहारते हुए अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से घर के आस-पास के दृश्य को निहार रही थी। सुनंदा साठ वसंत देख चुकी थी। बहुत समय बाद उसके चेहरे पर एक संतुष्टि का भाव था। कुछ वर्षों पहले अपने पति को खो चुकी थी। अब उसके बेटे और बहू सुनीता के साथ एक चुलबुली सी पोती भी थी, जो घर की रौनक़ बनाए रखती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन करोना के चलते जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया था। सुनीता को दो वर्ष पहले की बातें याद आ रही थीं। सुनंदा का बेटा महेश जो मुंबई में काम करता था। सब कुछ ठीक ही चल रहा था। किसी बात की कोई परेशानी नहीं थी कि अचानक कोरोना का आगमन हो गया और सब कुछ ठहर-सा गया। घर पर बैठे रहने से जमा पूँजी भी ख़त्म हो चली थी। एक-एक दिन बीतना पहाड़-सा हो गया। इलाक़े में कोई काम-धंधा भी नहीं था। महेश को नए-नए व्यंजन बनाने का शौक़ बचपन से ही था। वह जब कुछ बनाता तो अपने दोस्तों को बुलाता, जिस पर सुनंदा हमेशा ग़ुस्सा हो जाती थी कि यह क्या काम है? उसे महेश के इस काम से शर्मिंदगी होती थी। 

एक साल बीतते-बीतते महेश भी तंगहाल हो गया था लेकिन उसने अपने हुनर को ही कमाई का ज़रिया बनाने की ठान ली। अपने दोस्तों और सोशल मीडिया का सहारा लेकर घर से ही तरह-तरह के नाश्तों की चीज़ें घर पर ही बनाने लगा। शुरू में तो काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। घर में भी किसी ने इस काम में साथ नहीं दिया। कुछ महीनों की मेहनत रंग लाई और आस-पास में उसके स्वादिष्ट नाश्ते की चर्चा होने लगी। अब तो यह हाल है कि उसके नाश्ते की धूम मची हुई है और उस इलाक़े में कोई कार्यक्रम हो महेश के यहाँ का नाश्ता ही जाता है। कहा जाता है कि सीखा हुआ कोई भी हुनर कभी व्यर्थ नहीं जाता। 

महेश पूरी ईमानदारी और लगन से लोगों के मनमुताबिक ऑर्डर बना के दे रहा है। घर से बना कर देने पर भी वह अब कुछ लोगों को रोज़गार भी दे पा रहा है, जो नाश्ता बनाकर उसे लोगों तक पहुँचा रहे हैं। 

और सुनंदा की बात करें तो वह अब रोज़ आराम से सुबह की पहली किरण का आनंद इत्मीनान से लेती है और पोती के उठने का इंतज़ार करती है। उसे महेश के हुनर से कोई शिकायत नहीं। 

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