कभी चले थे साथ-साथ
काव्य साहित्य | कविता दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'30 Jan 2008
कभी चले थे हम साथ-साथ
थामें रहते थे एक-दूसरे का हाथ
एक दूसरे के दिल थे इतने पास
कभी अलग होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
वक्त गुज़रते-गु्ज़रते दूर होते गए
हम पाले रहे याद उनकी
उनके बिना लम्हें खालीपन के साथ
यूँ ही गुजरते रहे
कभी दिल भी इतनी दूर होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
उनकी याद में हमें दिल में
चिराग उम्मीद के जगाये रखे
जब भी उनकी याद आयी
अधरों पर मुस्कान उभर आयी
हम अपने अँधेरों में भी
उनसे रोशनी उधार माँगें
यह हमने सोचा ही नहीं था
जो एक बार उनके
घर के बाहर रोशनी देखी
उस दिन कदम खिंच गए
वह अपनी खुशी में
वह हमें भूल जायेंगे
यह हमने कभी सोचा ही नहीं था
हमें देखकर भी उनके चेहरे पर
मुस्कान नहीं आयी
आखें थी उनकी पथराई
हम खड़े थे स्तब्ध
उनके मेहमानों की फेरहिस्त में
हमारा नाम नहीं था
पास थे हम, पर दूर रहा उनका हाथ
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