समाज को काटकर कल्याण के लिए सजाते
काव्य साहित्य | कविता दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'30 Jan 2008
समाज को टुकडों-टुकडों में बाँटकर
उसे अब दिखाने के लिए वह सजाते
हर टुकड़े पर लगते मिट्टी का लेप
और रंग-बिरंगा बनाते
बालक, वृद्ध, महिला, युवा, और अधेड़ के
कल्याण की लगाते तख्तिया और
उनके कल्याण के लिए बस
तरह-तरह के नारे लगाते
इन्हीं टुकड़ों में लोग अपनी पहचान तलाशते
स्त्री से पुरुष का
जवान से वृद्ध का भी हित होगा
इस सोच से परे होकर
कर रहे हैं दिखावे का कल्याण
फिर भी समाज जस का तस है
चहुँ और चल रहा अभियान
असली मकसद तो अपने घर भरना
वाद और नारा है कल्याण
अगर समाज एक थाली की तरह सजा होता
तो दिखाने के लिए भरने पड़ते पकवान
टुकड़ों में बाँट कर छेड़ा है जोड़ने का अभियान
अब कोई पूछता है तरक्की का हिसाब तो
समाज के टुकड़ों को जोड़ता दिखाते
तोड़ने और बाँटने की कला
देखकर अब तो अंग्रेज भी शर्माते
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