कलयुग में जन्मोत्सव
काव्य साहित्य | कविता अंजलि जैन शैली15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
समर्पण के मानक कितने, कहो
कहाँ रहीं वो मीरा,
यमुना जल बादल में बदले
सूखे अधजल तीरा।
कलयुग के जन्मोत्सव की
अब किसको रह गई पीरा॥
दीप जले थे जन्मोत्सव में
और बून्दी लड्डू भुक्ति,
मोम पिघलती मक्खन पे
अब मोहन की अंधी भक्ति
सूरज ढलता पूरब में
कि पश्चिम में अनुरक्ति॥
राधा धारा परंपरा की
थी नौ हथ लिपटी साड़ी
जींस पहने पचपन वय की
कैसी बहुरी, कैसी लाड़ी
हाँक रही अकेली वो राधे
संस्कारी बिन पहिया गाड़ी॥
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पाण्डेय सरिता 2023/09/17 08:50 PM
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पाण्डेय सरिता 2023/09/17 08:53 PM
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