कर्म ही प्रधान है
काव्य साहित्य | कविता उमेश पंसारी1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
अखंड है वसुंधरा, अखंड आसमान है,
रुकूँ नही थकूँ नहीं मैं, जब तलक ये प्राण हैं
हृदय में एक गान है, कर्म ही प्रधान है...
राहों की सारी अड़चनें, सब धूल के समान हैं
पंख मेरे हैं खुले, स्वतंत्र शंखनाद है
क़दम क़दम हूँ चल रहा, सफ़र ये बेज़ुबान है
खोजता हूँ चल रहा, क़दम के जो निशान हैं
दिख रही हैं मंज़िलें, पर लक्ष्य न आसान है
हृदय में मेरे एक क़तरा, भय का विद्यमान है
ये संकटों की है घड़ी, विपत्तियाँ महान हैं
खड़ा रहूँगा मैं अडिग, ये मेरा स्वाभिमान है
हृदय में एक गान है, कर्म ही प्रधान है।
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