कर्मभूमि
काव्य साहित्य | कविता गरिमा गुप्ता15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
तुम श्वेत श्वेत मैं पीत पीत
तुम शांत एकांत, मैं सुर संगीत
तुम ठिठुरे से तुम ठहरे से
हम बावरे कुछ पगले से
तुम वृहद् आकाश बेरंग
मैं तुम में कहीं एक आवारा पतंग
मेरा मन वसंत का वासी है
तुम्हारा मौसम सदा ही शीत
तुम दूर-दूर कुछ अलग थलग
मुझ में रमा यह सारा ही जग
तुम नाप-तोल तुम सही–ग़लत
मेरी बेफ़िक्र बंजारा फ़ितरत
तुम कर्म भूमि तो हो मेरी
पर मन मेरा पाए ना जीत।
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