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सत या असत 

 

क्या है सत, क्या असत, 
क्या है स्वप्न, यह क्या पता? 
क्या सही है, क्या ग़लत, 
क्या यही है, या नहीं है वह रास्ता? 
 
ऐसी आग जो फिर बुझे ना—
उत्कंठा कहो चाहे कामना 
अनदेखे अनछुए की इच्छा
विश्वास है या कल्पना? 
 
भोग नहीं, भोक्ता नहीं, 
कर्म नहीं, कर्ता नहीं, 
सत्य की कोई खोज नहीं, 
भय नहीं, और आस्था नहीं। 
राह क्या पकड़ूँ मैं फिर, 
जब मुझे कहीं जाना नहीं। 
 
मैं यहीं हूँ, मैं इधर हूँ
इस धरा पर, इस एक क्षण में, 
कोई अंतर तो होगा शायद
अनुरोध, आग्रह और आकर्षण में। 
 
क्यों में तोड़ूँ इस साँचे को
जो है तूने ही दिया
तोड़ने की प्रक्रिया को यूँ भी समाहित
हर क्रिया में है किया। 
 
हूँ निभाती मैं विरक्ति 
नित आचरण के आवरण में। 
कोई अंतर तो होगा शायद
अनुरोध, आग्रह और आकर्षण में।

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