कुत्ते की पूँछ
काव्य साहित्य | कविता पवन निषाद15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
डर . . .
दोनों को था
मुझको भी
उसको भी
मुझे मेरा घर लुटने का डर था
उसे उसका देश
मैंने एक कुत्ता पाला
उसने एक नेता
मुझे लगता था
कुत्ता मेरे घर की रखवाली करेगा
उसे लगता था
नेता उसके देश की
मैंने कुत्ते को घर का चौकीदार बनाया
उसने नेता को देश का
कुत्ता
मेरे घर की मुर्ग़ी खाता था
नेता
उसके देश की दाल
एक रोज़
चोर घुसे
मेरे घर में
उसके देश में
चोर ने
कुत्ते के आगे रोटी फेंकी
और घर लूट ले गए
चोर ने
नेता के आगे रोटी फेंकी
और देश लूट ले गए
मैं तो समझ गया
सभी कुत्ते वफ़ादार नहीं होते
मैंने उसे घर से निकाल दिया
तुम कब समझोगे
कुत्ते और नेता में समानता होती है
इनकी पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती
तुम कब निकालोगे
उस नेता को
इस देश से . . .?
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