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काव्य साहित्य | कविता पवन निषाद15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
हम सब के बीच
प्रचलित है कुछ
अफ़वाहें
पैसे की खनक से
प्रभावित हो जाती है
वेश्याएँ
भूल जाती हैं अपना
मान सम्मान मर्यादा
झुक जाती हैं
पैसे की तरफ़
जिधर वज़न हो ज़्यादा
मैं पूछ रहा
ऐसा बस वो ही करतीं?
नहीं . . .!
देखे हो
आज का मीडिया
जो पैसे की खनक से प्रभावित हो कर
झुक गया है,
राजनीति की तरफ़
उसका पूरा ख़र्चा उठा रही हैं सरकारें
कंधा थामा है लोकसभा ने
कमर पकड़ी है विधानसभा ने
पैर सहला रही विधान-परिषद
बेच दी सबने अपनी इज़्ज़त
लेकर चंद पैसे
हाँ-हाँ-हाँ
मैं डंके की चोट पर हूँ कहता
मीडिया
मीडिया नहीं
वो है
एक वेश्या . . .!
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