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माँ बूढ़ी हो रही है

 

अबकी मिला हूँ माँ से, 
मैं वर्षों के अंतराल पर, 
ध्यान जाता है बूढ़ी माँ, 
और उसके सफ़ेद बाल पर, 
 
आज-कल की ढेरों बातें, 
वह अक़्सर भूल जाती है, 
मेरे बचपन की पुरानी बातें, 
वह कई दफ़ा दुहराती है, 
 
थोड़ा झुक कर चलती है, 
थोड़ा सा लड़खड़ाती है, 
रात में देर तक जागती है, 
दिन में अक़्सर सो जाती है, 
 
जिस माँ को छोड़कर गया था, 
लौटकर उसे क्यों नहीं पाता हूँ, 
कई दफ़ा माँ की बातों पर भी, 
मैं अनमने खीझ से भर आता हूँ, 
स्मृतियों के पंख लगाए तब मैं, 
पुरानी माँ से मिलने जाता हूँ, 
 
दिखती हैं माँ मुझे गोद में लिए-लिए, 
सारे घर का ज़िम्मा एक पैर पर उठाते, 
आँगन के सिलबट्टे पर मसाला पीसते, 
मेरे पीछे दूध का गिलास लिए भागते, 
जीवन की कोरी स्लेट पर रात को, 
मुझे सही ग़लत के क ख ग सिखाते, 
 
बल बुद्धि विवेक का क्षीण होना, 
हम सबकी उम्र का क़िस्सा है, 
मेरे पास आज जो भी समझ है, 
वो भी तो मेरी माँ का हिस्सा है, 
 
माँ का बूढ़ा होते जाना, 
नहीं है एक दिन का सिला, 
ग़लती मेरी थी जो मैं उससे, 
वर्षों के अंतराल पर मिला, 
 
अब रोज़ वीडियो कॉल पर, 
मैं उसे ग़ौर से देखा करता हूँ, 
उसकी सारी बातें सुनता हूँ, 
चाहे ग़लत हों या सही, 
उसे देखते अंतर्मन में एक भय कचोटता है, 
कल मेरे फोन में माँ का सिर्फ़ नंबर रहेगा, 
शायद माँ नहीं . . . 

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