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महाभारत का युद्ध 

 

युद्ध की विभीषका के उपरांत 
यदि पूछा जाता कुंती से 
क्या अब भी मूलयवान है 
उसके लिए 
कर्ण जन्म का रहस्य 
तो शायद 
दहल जाती 
द्रोपदी से पूछा जाता 
क्या अतिथेय सम्मान की मर्यादा तोड़ 
कर पाई अपने अहम को शांत 
तो रो देती 
और सत्यवती के पिता 
जीवन भर तैयार हो जाते 
भिक्षा पर भरण के लिए 
यदि युद्ध की विभीषका 
से हो जाते परिचित 
और धृष्टराष्ट्र 
अपने मन पर 
पुत्रों के शवों का शोक 
ढोने से बच जाते 
यदि जोड़ पाते अपने मन को 
सच्ची सबोध राहों से 
मनुष्य
ने सरलता को छोड़ 
जब भी 
विषमता अपनाई है 
तो 
हर बार युद्ध की ही ठोकर खाई है 
चाहे फिर वह युद्ध
घर में हो 
मोहल्ले में हो 
या 
फिर विश्व में 
रणभेरी सदा कुंठाओं ने ही 
बजाई है। 

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