मनोविकार
काव्य साहित्य | कविता मोहित त्रिपाठी1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
उठता जब शत्रु मनोविकार
फैल भयंकर दावानल-सा।
काम, क्रोध, लोभ, मोह से
संचित पुण्यों को झुलसा।
मन से उपजा वाणी में उतरा
करता दूषित आचार-विचार।
व्यक्तित्व, चरित्र पतन-कारक
करता जन-मानस को दो चार
उठता जब शत्रु मनोविकार।
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