मेरे प्यारे दादा
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता रितेश इंद्राश1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
खेतों में हल लेकर दादा जब भी जाते थे
पाँव में छाले और थकान लेकर घर आते थे
खाने-पीने में कभी नहीं धौंस दिखाते थे
जो पाते थे खाकर दादा खेत चले जाते थे
वापस आते दादा सब्ज़ी लेकर आते थे
पतली सी पगडंडी पर बिन दीपक चल जाते थे
दस जन का पेट दादा ख़ुशी-ख़ुशी भर जाते थे
जब भी सोते रात में दादा दर्द से कराहते थे
बिन बोले किसी से सब दर्द सह जाते थे
कुछ कहने से पहले दादा प्यार से मुस्कुराते थे
दादा-दादी कभी-कभी बच्चों जैसे लड़ जाते थे
अब दादा तो नहीं रहे जो दादी का साथ निभाते थे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता - क्षणिका
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं