मौसम बेगाना हो चुका है
काव्य साहित्य | कविता रितेश इंद्राश1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ये मौसम बेगाना हो चुका है
तुझसे मिले ज़माना हो चुका है
मेरे हमसफ़र तुम लौट आओ
तुम्हें बिछड़े ज़माना हो चुका है
नदिया क्या समुंद्र क्या बहाना क्या
यह डायलॉग सब पुराना हो चुका है
ये ज़ख़्म भी पुराने हो चुके हैं
ये मंज़र भी पुराना हो चुका है
वही शहर है वही मिट्टी है
बस क़िस्सा पुराना हो चुका है
तुम दूर हो बस बहाना है
आज मौसम भी सुहाना हो चुका है।
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