मेरी चाहतें
शायरी | नज़्म अमितोष मिश्रा3 Mar 2009
ता-उम्र तेरी चाहतों का सीने में एक सैलाब रहे।
ख़ुदा ऐसी शब न दे, जिसमें न तेरा ख़्वाब रहे॥
तेरी आँखें है या समंदर मय का।
मेरे घर में एक भी ना, बोतल-ए-शराब रहे॥
एक सुहाने सफ़र सी होगी ज़िन्दगी।
आसपास मेरे ग़र, तुझ जैसा अहबाब रहे॥
उठते हैं हाथ मेरे हर वक़्त इस दुआ में।
क़यामत तक तू रहे, तेरा श़बाब रहे॥
चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा।
ख़ुदा ख़ैर करे, जब दो-दो आफ़ताब रहे॥
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