फूँक
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी अशोक रंगा1 Sep 2022 (अंक: 212, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
वर्तमान में फूँक ज़ोरो से प्रचलन में है। हर आदमी अपनी अपनी फूँक में जी रहा है। किसी को दौलत की तो किसी को अपने पॉवर की तो किसी को अपने रूप रंग की तो किसी को अपनी जवानी की फूँक है।
मामूली राम ने दिल्ली में एक अप-टू-डेट सज्जन से स्कूल का पता पूछा, जो उसका परीक्षा केंद्र निर्धारित था। वे सज्जन “पता नहीं” बोले कर आगे निकल गए। फिर मामूली राम को बड़ी मुश्किलों से उस स्कूल का पता मालूम हुआ। जब मामूली राम जी उस स्कूल के पास में पहुँचे तो देखा कि स्कूल के बिल्कुल सामने उन सज्जन का घर था। वे अपने घर के बाहर खड़े आराम से “पेस्ट” कर रहे थे। उन सज्जन को देख कर मामूली राम जी को बहुत बुरा लगा। वे कहने लगे कि पता नहीं इनको किस बात की फूँक है।
हालाँकि फूँक निकलते देर नहींं लगती मगर अधिकांश लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं। मामूली राम जी ने एक बार एक मैकेनिक को प्रिंटर की सफ़ाई के लिए घर पर बुलाया। वह मैकेनिक प्रिंटर पर ज़ोर-ज़ोर से फूँक मार कर उसकी सफ़ाई कर रहा था। यह देख मामूली राम जी से रहा नहीं गया और उसके सामने बोल पड़े कि भाई ज़रा फूँक धीरे से मार। कही फूँक निकल गई तो हमारे मुसीबत हो जायेगी। लेने के देने पड़ जायेंगे। यह सुनकर वह सज्जन ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़ा। अब हँसी के कारण उनकी फूँक निकल ही नहीं पा रही थी। जैसे ही फूँक मारने की कोशिश करते तब तब हँसी आने लगती।
अगले दिन मैकेनिक को हवा फेंकने वाली मशीन ही लानी पड़ी तब जाकर प्रिंटर की सफ़ाई हुई। मामूली राम जी ने उनको बताया “अपनी फूँक को बचा कर रखा करो भाई।” मामूली राम ने उसे फूँक बचा कर रखने का कहा। वह बेचारा ग़रीब था सो मान गया और मशीन ले आया मगर बड़ी-बड़ी फूँक वाले जल्दी से नहींं मानते हैं। कभी-कभी इनकी थोड़ी सी फूँक निकलने पर बैराग उत्पन्न होता है लेकिन कुछ ही दिनों में फिर से फूँक भर जाती है। यह पूर्ण सत्य है कि एक न एक दिन सबकी फूँक निकलनी है फिर भी हम सभी फूँक में ही जीना चाहते हैं।
मामूली राम जी तो फिर भी समय-समय पर सबसे पूछते रहते हैं कि यदि मुझमें फूँक आ जाए तो उसे कैसे कंट्रोल किया जाए पर फूँक वाले ज्ञानी फूँक के मारे यह भी नहीं बताते हैं। हाँ, अगर कोई बड़ी फूँक वाला बड़ी फूँक वाले से यह सवाल पूछे तो वह बता देगा।
एक गाना याद आ रहा है—दम मारो दम मिट जाए ग़म—दम का एक अर्थ फूँक भी होता है। गाना बेचारा ख़ूब बजा मगर फूँक (दम) को मार कर कोई भी जीना ही नहीं चाहता।
इसलिए कहते हैं कि भाई फूँक को बचा कर रखो वरना इसका जल्दी कोटा ख़त्म होने पर ख़ुद की फूँक निकलने में देर नहींं लगती।
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