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तनाव

सुधीर कुमार समय और सफ़ाई के प्रति बहुत जागरूक रहते थे। इस कारण अक़्सर उनके घर में तनाव देखने को मिल जाया करता था। 
घर की वस्तुएँ अपनी जगह पर नहीं मिलने पर और चाय नाश्ता व भोजन आदि समय पर नहीं मिलने पर वे घर में हंगामा खड़ा कर दिया करते थे। कई बार तो घर में नाराज़ होकर खाना नहीं खाने का नाटक भी शुरू कर दिया करते थे। 

इनकी इन आदतों के कारण इनके ऑफ़िस निकलने पर सभी अपने आप को हल्का महसूस करते थे। 

एक रोज़ रविवार की सुबह-सुबह घर में काँच के सामने कंघा नहीं मिलने पर सुधीर बाबू को इतना ग़ुस्सा आया कि वे सीधे ही नाई की दुकान पर जाकर उस्तरे से अपने सारे बाल हटवा कर लोडमोड होकर अपने घर आ गए। इनकी इस हरकत को लेकर घर में अब सबकी हालत पतली हो चुकी थी। 

आख़िर उनकी धर्मपत्नी ने हिम्मत जुटा कर कहा कि आपने क्या शादी मुझसे की है या फिर समय और सफ़ाई से? समय और सफ़ाई के अलावा क्या तुम किसी के पति, पिता और बेटे नहीं हो? क्योंकि तुम्हारी इन आदतों को लेकर हम सब दुखी हो चुके हैं। हालाँकि हम सभी आपका व आपकी आदतों का पूरा ध्यान रखते हैं फिर भी यदि कभी कोई कमी रह जाती है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम सब तुम्हारे दोषी हो गए। 

यह सुनकर सुधीर कुछ उग्र होने लगे तब उनकी बूढ़ी माँ ने भी आज तो हिम्मत जुटा कर अपने बेटे को डाँटते हुए कहा कि बेटे सुधीर! आज तुमने अच्छा नहीं किया। अपनी माँ को भी जीते-जी मार डाला है। अब जब भी घर से बाहर निकलोगे तब लोग ज़रूर पूछेंगे कि क्या माताराम नहीं रहे? क्योंकि पिताजी तो तुम्हारे पहले से ही तुमसे अपना पिंड छुड़ा चुके हैं। 

आज सुधीर कुमार अचानक दोनों तरफ़ से हुए अटैक को सुन कर और देख कर हतप्रभ से होकर चुपचाप सुनते रहे। शायद जैसे दोनों की बातें सुधीर को अन्दर तक झँझोड़ गईं हों। 

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