असंगठित मज़दूर
कथा साहित्य | लघुकथा अशोक रंगा15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
बाहर सड़क पर तापमान 48 डिग्री सेल्सियस के आस पास था। तेज़ धूप और गर्म हवाएँ चल रही थीं। धूप में पड़ी हुई हर वस्तु गर्म हो रही थी जैसे कि बिजली का खंबा, साइकिल यहाँ तक कि पत्थर भी गर्म हो रहे थे जिनको छूने पर हाथ जल से रहे थे। इस गर्मी के दौरान सड़क निर्माण कार्य में लगे हुए मज़दूर जलते हुए डंबर और कंक्रीट के मिश्रण को सड़क पर ढाल रहे थे। एक तरफ़ गर्मी और ऊपर से गर्म डंबर और कंक्रीट। ऐसे हालात में मज़दूर को बीच-बीच में दो मिनट छाँव में विश्राम और ठंडे पानी की याद सता रही थी। मज़दूर से रहा नहीं गया और उसने ठेकेदार को अपना माई-बाप समझते हुए उसके सामने थोड़ी सी छाँव और ठंडे पानी की व्यवस्था करने की मन की बात रख दी। ठेकेदार ने भी शांत रहते हुए अपनी गर्दन हिलाई मगर सायंकाल ठेकेदार ने उसका हिसाब करते हुए कहा कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं लग रही है इसलिए कल से कुछ दिनों के लिए ठंडी छाव में विश्राम करो। मजबूर मज़दूर अपना मुँह लटकाए हुए अपने घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में किसी बड़ी यूनियन या विभाग के कर्मचारी ‘हमारी एकता जिंदाबाद’ और ‘ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है’ के नारे लगाए जा रहे थे।
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