प्यार
काव्य साहित्य | कविता अनिलप्रभा कुमार4 Oct 2006
(प्रेम के विभिन्न धरातल)
सच है
कि ज़मीन सख़्त है
और आकाश
बाँहों की पहुँच के बाहर।
तपती लुएँ और पागल अन्धड़
दुधमुँहे सपनों को झुलसा भी देते हैं,
और वो जादू अब नहीं होते
जो सहसा
सारा माहौल बदल देते हैं।
कहीं कुछ तो होता है
कि चाहे माहौल बदला न हो,
पर बदला महसूस होने लगता है।
हालाँकि
बात कुछ भी नहीं होती
सिर्फ़ कहीं कोई किसी को
प्यार करने लगता है।
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