साजन बिन सावन
काव्य साहित्य | कविता मनीषा कुमारी आर्जवाम्बिका1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हो पिया जब परदेश में
सावन भी सूखा लगता है
सजनी का हर शृंगार भी
पी बिन अधूरा लगता है
बारिश की हरेक बूँद भी
तब आग ही बन जाती है
सावन की सुहानी रातों में
जब याद पिया की आती है
व्याकुल रहता है मन
मिलन को तरस जाता है
बिना साजन सारा सावन
आँखों से ही बरस जाता है
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