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साथ दे दो चलो जीत हम जाएँगे

वक़्त की आँधियाँ आओ सह लें चलो
लड़खड़ाते क़दम फिर सँभल जाएँगे
आओ हम ही चलो आज झुक जाएँगे
टूटते रिश्ते फिर से सँभल जाएँगे। 
 
रिश्तों के खेत में हो उपज प्रेम की
ख़ुशियों के उर्वरक से ही हरियाली हो
काट लें आओ मिलकर फ़सल प्रेम की
मन के खलिहान फिर से सँवर जाएँगे।
 
जो कभी थे हमारे वो अब क्यों नहीं
प्रीति सच्ची थी पहले तो अब क्यों नहीं
आओ छोड़ो शिकायत ख़तम करते हैं
आज फिर पहले जैसे निखर जाएँगे।
 
अपनों से खेद ज़्यादा उचित भी नहीं
रख लो मत भेद मन भेद फिर भी नहीं
अपनों से जीत जाना भी इक हार है
हार मानो चलो एक हो जाएँगे।
 
सच्ची निष्ठा प्रतिष्ठा सदा प्रेम से
जीवन में बस प्रगति अपनों के साथ से
एक जुटता से ही मिलता संबल सदा
साथ दे दो चलो जीत हम जाएँगे।
साथ दे दो चलो जीत हम जाएँगे॥

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