शब्द शृंगार
काव्य साहित्य | कविता तनु प्रिया चौधरी15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मेरे शब्द मेरा सोलह शृंगार हैं
जब कण्ठ में विराजे तो नवरत्न हार हैं
जब होठों से छलके तब मेरा प्यार हैं
जब भाव सिमटे ये माथे पर
बिन्दी बन मेरा ख़ुमार हैं
आँखों से जब बहते तो
मेरे काजल और लज्जा का आधार हैं
मेरे शब्द जब किसी के कानों पे देते दस्तक
तब कनक कुण्डल का उपहार हैं
ये मेरी हथेलियों पे मेहँदी की महक
पैरों में पायल की झंकार हैं
ये मेरे शब्द मेरा सोलह शृंगार हैं
जब कलाइयों पर बिछे तो
अनमोल कंगन हैं
फिर उँगलियों से अँगूठी बन लिपट
उनका इकरार हैं
जब काग़ज़ पर उतरें तो
मेरी भावना का इज़हार हैं
ये पैरों पे पैजनिया, नाक पे नथ,
हाथों पे चुड़ी, ललाट पर टीका और
माथे पर चुनरी रूप है मेरा प्यार हैं
और क्या कहूँ इनका
यही मेरा सौन्दर्य यही संपूर्ण शृंगार हैं।
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