तड़पन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुषमा गुप्ता12 Apr 2017
हवा बजाए साँकल ..
या खड़खड़ाए पत्ते..
उसे यूँ ही आदत है
बस चौंक जाने की।
कातर आँखों से ..
सूनी पड़ी राहों पे ..
उसे यूँ ही आदत है
टकटकी लगाने की।
उसे यूँ ही आदत है ...
बस और कुछ नहीं ...
प्यार थोड़े है ये और
इंतज़ार तो बिल्कुल नहीं।
तनहा बजते सन्नाटों में..
ख़ुद से बात बनाने की..
उसे यूँ ही आदत है
बस तकिया भिगोने की।
यूँ सिसक-सिसक के..
साथ शब भर दिये के ..
उसे यूँ ही आदत है
बस जलते जाने की।
उसे यूँ ही आदत है..
बस और कुछ नहीं ...
प्यार थोड़े है ये और
तड़पन तो बिल्कुल नहीं।
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