तिरंगा फिर लहराना है
काव्य साहित्य | कविता उत्तम टेकड़ीवाल1 Sep 2022 (अंक: 212, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
आज हम स्वाधीनता का उत्सव मना रहे हैं
ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ गणराज्य बता इतरा रहे हैं
हम हैं सबसे बड़े समाजवाद, लोकतंत्र वृहदतम
होता है जहाँ संस्कृति और आस्थाओं का समागम
सारे बंधनों से अपने मुक्त होने जुड़ गए हैं
स्वाधीनता का भव्य मंदिर बनाने भिड़ गए हैं
फिर क्यों हम अब भी कट-कट कर बँट रहे हैं
कश्मीर की वादियों में अब भी बम फट रहे हैं
बाईस थे पहले अब उन्नतीस राज्यों में बँट चुके हैं
एकता के सर आतंक के समक्ष फिर क्यों झुके हैं
ये कैसा तंत्र है जो गण-गण में भेद करता है
तिरंगे के दामन में धर्म, जाति के छेद करता है
क्यों एक सूत्र में बँधना इतना कठिन हो रहा
क्यों हमारा देश प्रेम स्वार्थ के अधीन हो रहा
जवान और किसान आज अपनी पहचान खोज रहा है
मिलावटी परंपराओं में भारत स्वाभिमान खोज रहा है
क्यों वेदों के ज्ञान को हम भूल बैठे हैं
विदेशी परम्परा को अपना कर ऐंठे हैं
विश्व गुरु का स्थान अब हमें फिर पाना है
स्वतंत्र चेतना से तिरंगा फिर लहराना है
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