तुझे अकेला ही चलना है
काव्य साहित्य | कविता समीर द्विवेदी 'नितान्त'15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जितना ज़्यादा साथ निभाया,
उतना लोगों ने ठुकराया।
ग़ैरों से सतर्क था हरपल,
अपनों से ही धोखा पाया॥
ये दुनिया मतलब परस्त है,
ख़ुद में ही हर शख़्स मस्त है।
बात समझ में तब ये आई,
जब जीवन कुछ अस्त व्यस्त है॥
क़दम क़दम सब ने भरमाया,
सार समझ में तब यह आया।
तुझे अकेला ही चलना है,
साथ न देता अपना साया॥
वाह रे ईश्वर तेरी माया,
जिसको कोई समझ न पाया।
कठपुतली सा ख़ूब नचाया,
रोज़ नया इक रंग दिखाया॥
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