तुम और दुःस्वप्न
काव्य साहित्य | कविता कमल कुमार1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मेरे स्वप्न में
मिश्रित ध्वनियाँ आती हैं
हाँस जिमर के संगीत से युक्त
नियोन लाइट्स के शॉट्स
और मिश्रित ध्वनियाँ
विदारक तत्वबोध
चकरघन्नी, माँ का पुराना कैंसर
छोटे भाई का करुण रुदन
और उम्र से पहले बड़ी हो गई
बहन की सिसकियाँ
स्वप्न जैसे दुःस्वप्न
अश्वत्थामा को जैसे कभी-कभार आते होंगे
शोक और भू-भस्म क्रोध में मिश्रित पश्चाताप के स्वप्न
मगर क्षणिक,
मुझे तुम दिखीं
जैसे बुकस्टैंड पर
नई कविता की किताब का पीला कवर
या नग्न नवजात के मख़मली हाथ
मैं
सपने में रोया
तुम्हारा सर्वस्व ख़ुद में भरकर
आत्मशीत रोया
और तुम
चूमती रही मेरी आँखें
मेरा सर
और आत्मा!
मैं स्वप्नों के अंदर के सच में
और सच के अंदर के एक और सपने में
आलिंगनबद्ध रहा तुमसे
सच था तो वही सपना सच था
और जहाँ तुम नहीं थीं
गौण था वो सच
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