उद्वाचन को प्रतीक्षारत
काव्य साहित्य | कविता कमल कुमार1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
हड़प्पा के किसी
धूसर चौराहे पर
शिलालेख सा खड़ा हूँ मैं
स्वयं पर उत्कीर्ण
किसी आदिम,
अगूढ़ भाषा के
विस्मृत चिह्न लिए
असंख्य वर्षों से
अनवरत,
निस्पृहीय
उद्वाचन को प्रतीक्षारत,
गुज़रती हैं
सभ्यताएँ,
चक्रवर्ती सम्राट और
अजेय सेनाएँ;
मैं,
विवशतावश
शब्दशः दर्ज करता हूँ
घटित घटनाएँ
निर्दयी युद्ध
कुत्सित प्रथाएँ
तथापि,
आशान्वित
तुम्हारे आगमन को प्रिय,
मैंने सहेजी हैं,
अनुपम सी
स्नेहिल सी
प्रेम कथाएँ!!
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