उड़ने वाले डाकिये
काव्य साहित्य | कविता अमरेन्द्र सुमन6 Mar 2017
आकाश की अनन्त उँचाइयों पर
बिना विश्राम किये, उड़ते हुए
गन्तव्य पथ की ओर अग्रसर
नन्हे कबूतरों ने
बंद कर दिया है संवादों को ढोना अब।
एक स्थान से दूसरे स्थान तक
पत्रों को पहुँचाने की कला में
पूरी तरह माहिर ये आकाशीय डाकिये
तलाश रहे इन दिनों
जीवन भर का विश्राम
किसी बहेलियों से नहीं चाहते
अनायास भी मुलाक़ात हो इनकी।
आकाश में उड़ने वाले डाकिये की
उड़ चुकी है नींद
बंद हो चुकी है जुबान
खो गई है हँसी-मुस्कान।
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