वे हँसने लगे
काव्य साहित्य | कविता ख़ुदेजा ख़ान1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
ज़मींदोज़ मृतकों में
एकाएक शुरू हो गई बातचीत, घनिष्ठता बढ़ने लगी
वे हँसने लगे
अपनी जाति नस्ल कुल गोत्र की बात पर
देखो बिल्कुल एक जैसे हम
निरे कंकाल के कंकाल
वही 206 हड्डियों का ढाँचा
है कि नहीं!
वे फिर हँसने लगे।
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