व्यर्थ विषय
काव्य साहित्य | कविता अजन्ता शर्मा6 Apr 2007
क्षणिक भ्रमित प्यार पाकर तुम क्या करोगे?
आकाशहीन-आधार पाकर तुम क्या करोगे?
तुम्हारे ही क़दमों से कुचली, रक्त-रंजित भयी,
सुर्ख फूलों का हार पाकर तुम क्या करोगे?
जिनके थिरकन पर न हो रोने हँसने का गुमां
ऐसी घुँघरू की झनकार पाकर तुम क्या करोगे?
अभिशप्त बोध करता हो जो देह तुम्हारे स्पर्श से,
उस लाश पर अधिकार पाकर तुम क्या करोगे?
तुम जो मूक हो, कहीं बधिर, तो कुछ अंध भी
मेरी कथा का सार पाकर तुम क्या करोगे?
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