यह कैसा जीवन है?
काव्य साहित्य | कविता रीता तिवारी 'रीत'15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
सपनों का संग था, जीवन में रंग था,
छाई कैसी धुँध की सपने बिखरने लगे।
यह कैसा जीवन है? मानव डरने लगे।
ना कोई आहट की, कैसे तुम आए हो?
मानव के जीवन में, काल से लगने लगे।
यह कैसा जीवन है? मानव डरने लगे।
कैसी बीमारी है? बनी महामारी है,
जीवन में ख़ुशियों को, तुम निगलने लगे।
यह कैसा जीवन है? मानव डरने लगे।
ऐसा प्रहार किया, जीवन पर वार किया।
सपनों की डाली को, तुम कुतरने लगे।
यह कैसा जीवन है? मानव डरने लगे।
बदला बदला जहां, जीवन अब है कहाँ?
कर दो! दया प्रभु, "रीत" यह कहने लगे।
यह कैसा जीवन है? मानव डरने लगे।
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Phoolchand rajak 2021/09/04 07:04 PM
आज का इंसान वैज्ञानिक जीवन जी रहा है। मनुष्य होकर भी वह मनुष्य का जीवन नही जी रहा है। वह अपने आपको अमीर और गरीब मैं बट कर जीना चाहता है मनुष्य के जीवन का रहस्य नही जानना चाहता है। क्योंकि उसे इतना भ्रमित कर दिया गया है कि वह अपनी मंजिल ही भूल चुका है।